दुनिया के सुख, सुख देने वाली नहीं, हमेश कष्टदायक ही होती- ब्रह्म स्वरूप
दुनिया के सुख, सुख देने वाली नहीं हो सकती वह हमेशा कष्टदायक ही होता है। आगे कहा कि जो अपने गुरुदेव की उत्सव इस पृथ्वी पर मनाता है उसका उत्सव भगवान अपने धाम में उत्सव मनाते हैं।
दुनिया के सुख, सुख देने वाली नहीं, हमेश कष्टदायक ही होती- ब्रह्म स्वरूप
बक्सर अप टू डेट न्यूज़ :-श्री सदगुरुदेव पुण्य स्मृति महा महोत्सव कमरपुर के श्री हनुमान धाम मंदिर में मामा जी के भंडारा के साथ संपन्न हुआ।वही, वृंदावन धाम से पधारे संत अनंत श्री विभूषित श्री ब्रह्म स्वरूप जी महाराज भरत चरित्र की महिमा को सुनाया। कथा के दौरान उन्होंने कहा कि अगर मर्यादा के उल्लंघन होती है तो नहीं भगवान मिलते हैं और नहीं प्रभु का प्रेम। प्रभु प्रेम के लिए मर्यादा बहुत ही आवश्यक है और यह मर्यादा हमें राम चरित्र मानस ही सिखाती है।
जब तक मनुष्य के हृदय जलना समाप्त न हो जाती तब तक वह मांगते ही रहते हैं और ह्रदय का जलना तभी समाप्त हो सकती है जब प्रभु से प्रेम हो। दुनिया का प्रत्येक रोग हर बीमारी औषधि गुरु के पास ही होता है वह किसी रोग का समाधान तुरंत ही कर देते हैं। धर्म पुरव जो भोग प्राप्त होता है उसे ही बैराग कहा जाता है पर जो अधर्म से हो उसका विनाश जरूर होता है।
शास्त्र के अनुसार अगर कोई कार्य होता है तो बैराग अवश्य होगा। निशुल्क में मिली शिक्षा या कोई वस्तु से मनुष्य का कभी कल्याण हो ही नहीं सकता। पर भक्ति एक ऐसा साधन हैं जिससे कल्याण के साथ साथ शांति भी अवश्य मिल जाती है।दुनिया के सुख, सुख देने वाली नहीं हो सकती वह हमेशा कष्टदायक ही होता है। आगे कहा कि जो अपने गुरुदेव की उत्सव इस पृथ्वी पर मनाता है उसका उत्सव भगवान अपने धाम में उत्सव मनाते हैं। भवसागर में जो डूबता है वह मर जाता है पर जो प्रेम में डूबता है वह तर जाता है। प्यार में केवल त्याग ही त्याग होता है समर्पण की भावना होती है।
रात्रि में सीताराम विवाह के साथ मामा जी की पुण्य स्मृति का हुआ समापन
श्री राम विवाह के दौरान महाराज जी द्वारा रचित, परंपरागत मंगल गीत व गालियां गाकर बरातियों को निहाल कर दिया गया।’हउवन बड़ा धीर हो पहुना के गरियईह जनि। मंगल आजू जनकपुर घर घर मंगल हे, आइसन दुल्हन ना देखनी नगर में आदि, मंगल गाली गाकर मिथिला वासियों ने भगवान श्रीराम समेत चारों भाईयों की भरपूर खिचाई की। इन गीतों के माध्यम से भगवान के प्रति भक्ति की जो ससुराली रसधार बही, उसकी अनुभूति अनुपम थी। मिथिला की पारंपरिक मंगल गाली को सुनकर बाराती तथा संत व विद्वान भी भाव विभोर हो गए।
कन्यादान के भाव में दृश्य को देखकर सबकी आंखें नम हो गई
इसी क्रम में मंत्र अचार के माध्यम से राम जी चारों भाइयों का स्वागत किया गया तथा उसमें विभिन्न विद्वान ब्राह्मणों ने भाग लिया। मां के प्रारंभ में बहुत सारी सुहागिनों औरतों ने सोलह सिंगार करके दूर छक्क का कलशा लेकर मंगलमय गीतों पर नृत्य करते हुए मंडप में प्रवेश किया और राम जी का आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके पश्चात राम लक्ष्मण भरत और शत्रुघ्न चारों भाई पालकी पर चढ़कर आंगन में पधारे तथा ,सखियों ने मंगल में गीतों के साथ द्वारा चार की विधि संपन्न की। विवाह के अंतिम चरणों में सीता जी का विवाह राम जी के साथ उर्मिला जी का विवाह लक्ष्मण जी के साथ श्रुत्कीर्ति जी का विवाह शत्रुघ्न जी के साथ तथा मांडवी जी का विवाह भरत जी के साथ हुआ
जिसमें कन्यादान के विधि के द्वारा चारों कन्याओं का श्री जनक जी ने कन्यादान किया, कन्यादान के भाव में दृश्य को देखकर सबकी आंखें नम हो गई तथा सभी लोग भाव विभोर हो गए और कन्या पराया धन होता है इस कल्पना को कलाकारों ने चरितार्थ किया। कार्यक्रम में सोनू धनु निर्मल लालू छोटू अरविंद मनोज इतराए पिंटू अनिमेष दीपक पवन शिवम सोनू सरोज रमेश रामबचन मदन बिट्टू अभिशेक रामअवतार धर्मेंद्र अरुण राय समेत ग्रामीण बंधु उपस्थित रहे|
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